
“ऋषिकेश की तपोभूमि पर गंगा के पावन तट से उठी यह आवाज़ केवल कथा का स्वर नहीं, बल्कि आत्मा को झकझोरने वाला संदेश है। श्रीमद् भागवत के अमृतसागर में डूबते हुए पंडित राधेश्याम जी दुबे ने जीवन के गहन रहस्यों को उजागर किया – मन के पाँच सिरों वाले नाग को वश में किए बिना मुक्ति संभव नहीं। कथा केवल सुनने के लिए नहीं, बल्कि जीने के लिए है। जब तक सेवा और करुणा भक्ति का आधार नहीं बनते, तब तक भक्ति अधूरी है। यह कथा हमें केवल धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने की सही दिशा देती है।”
ऋषिकेश की पावन धरती पर श्रीमद् भागवत कथा का समापन

जनमत जागरण @ ऋषिकेश से ग्राउंड रिपोर्ट । ऋषिकेश– यह केवल एक नगर नहीं, यह ऋषियों की तपोभूमि है। गंगा की निर्मल धारा और योग-ध्यान की पावन लहरों के बीच श्रीमद् भागवत कथा का समापन हुआ। 6 सितंबर शनिवार को समापन दिवस पर पंडित श्याम जी दुबे ने कहा –
“कथा केवल सुनने के लिए नहीं, जीवन में उतारने के लिए है। जो भागवत को अपनाता है, वही जीवन में सार्थकता पाता है।”

🔹 अंतिम दिवस की दिव्य अनुभूतियाँ
कथा के अंतिम अध्याय में श्रद्धालुओं ने सुनीं अद्भुत शिक्षाएँ और प्रेरणादायक प्रसंग:
✔ 16108 रानियों की कथा – भगवान का हर जीव से प्रेम का संबंध।
✔ सुदामा-कृष्ण का मिलन – भाव की शक्ति, जो वैभव से भी बड़ी है।
✔ दुर्योधन का 56 भोग बनाम विदुर का सादा भोजन – भगवान को भोग नहीं, सच्चा भाव चाहिए।
✔ भगवान का सूक्ष्म रूप से भागवत में प्रवेश – यह संकेत कि कथा समाप्त होते ही भगवान को अपने हृदय में प्रतिष्ठित करना चाहिए।
✔ 24 अवतार और 9 प्रकार की भक्ति का रहस्य – हर अवतार लोभ, मोह और अहंकार के अंत का प्रतीक है।
✔ कालिया नाग प्रसंग – मन के विष को केवल भगवान के नाम से ही नष्ट किया जा सकता है।
🔹 अनंत चतुर्दशी का दुर्लभ संयोग

समापन दिवस पर 11 जोड़ों ने अनंत चतुर्दशी व्रत का उद्यापन विधिवत संपन्न किया। पंडित मदन शर्मा ने बताया –
“जिस भूमि पर तप, साधना और कथा हो, वहां किया गया संकल्प अनंत गुणा फल देता है।”
🪔 महायज्ञ और सेवा का संदेश

मुख्य यजमान सहित अन्य श्रद्धालुओं ने महाप्रशादी का आयोजन कर यह संदेश दिया कि भक्ति तभी सार्थक है जब वह सेवा में परिवर्तित हो। यज्ञ में आहुतियां देकर सुख, शांति और समृद्धि की कामना की गई।
🔔 चौंकाने वाले रहस्य और समाज को दिशा
✔ क्यों कथा के समापन पर सुदामा मिलन होता है?
क्योंकि यह अंतिम संदेश देता है – जीवन का वास्तविक वैभव संबंधों में है, अहंकार में नहीं।
✔ भगवान का सूक्ष्म रूप से भागवत में प्रवेश क्यों बताया गया है?
यह संकेत है कि भगवान ग्रंथों में नहीं, भाव में बसते हैं।
✔ विदुर का भोजन और दुर्योधन का 56 भोग
समाज को यह सीख – दिखावे से ऊपर उठकर सच्चाई, सरलता और करुणा में ही ईश्वर का वास है।

✅ सार्थक चिंतन
“भागवत कथा तब सार्थक होती है जब वह केवल श्रोता तक न रहे, बल्कि समाज का चरित्र गढ़े। आज आवश्यकता है कि हम कथा के संदेश को जीवन में उतारें। जब तक अहंकार टूटे नहीं और करुणा फूटे नहीं, तब तक भक्ति अधूरी है। ऋषिकेश की यह कथा हमें यही सिखाती है – प्रेम, सेवा और समर्पण से ही जीवन का कल्याण संभव है।”