सुसनेर आंदोलन : “किसानों की भीड़, नेताओं की चाल – क्या ‘न्याय यात्रा’ बनी शक्ति प्रदर्शन?” – विधायक बापू का बयान बना चर्चा”

✍️ विशेष रिपोर्ट | जनमत जागरण
किसान आंदोलन या राजनीतिक मंच?
सुसनेर का किसान आंदोलन एक ओर किसानों की पीड़ा का प्रतीक बना, तो दूसरी ओर यह कांग्रेस के भीतर ताक़त आज़माने का मंच भी बन गया।
मंच से जब विधायक भेरुसिंह परिहार ‘बापू’ ने दिल्ली बैठे कांग्रेस आलाकमान को संदेश देते हुए कहा – “मालवा के दिग्गज नेताओं को आगे बढ़ना होगा, तभी 2028 की स्थिति मजबूत होगी” – तो साफ़ हो गया कि यह आंदोलन केवल किसानों के मुआवजे तक सीमित नहीं है।
यह असल में किसानों के सहारे पार्टी के भीतर अपनी ताक़त दिखाने का राजनीतिक प्रदर्शन भी था।
जनमत जागरण @ सुसनेर से दीपक जैन की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट। नगर के पुराने बस स्टैंड पर गुरुवार को विधायक भेरूसिंह परिहार बापू के नेतृत्व में आयोजित किसान आंदोलन में कांग्रेस नेताओं ने भाजपा सरकार की नीतियों पर जोरदार हमला बोला। आंदोलन में खराब फसल के नमूने किसानों के हाथों में थे और कांग्रेस नेताओं ने मुख्यमंत्री के नाम एसडीएम सर्वेश यादव को ज्ञापन सौंपते हुए चेतावनी दी कि यदि 3 दिन में मांगें पूरी नहीं हुईं तो कार्यालय का घेराव किया जाएगा।
🎙️विधायक बापू का बयान – “प्रियव्रत और जयवर्धन रेस के घोड़े”
विधायक भेरुसिंह परिहार ‘बापू ‘ने अपने भाषण में पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह और प्रियव्रत सिंह खींची को “रेस का घोड़ा” बताते हुए कहा कि कांग्रेस हाईकमान अगर मालवा फतह करना चाहता है तो इन नेताओं को मैदान में उतारे। उन्होंने भाजपा सरकार की नीतियों को किसान और आम जनता के खिलाफ बताते हुए महंगाई पर भी कड़ा प्रहार किया।
🎙️अन्य नेताओं के वक्तव्य
महिदपुर विधायक दिनेश जैन बॉस – “बीमा कंपनियों को भाजपा सरकार फायदा पहुंचा रही है। उज्जैन जिले में इफ्को टोकियो कंपनी ने 3890 करोड़ की आय में से केवल 1100 करोड़ ही किसानों को लौटाए। 2000 करोड़ का फायदा सरकार ने कंपनी को दे दिया।”
किसान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह चौहान – “आज डबल इंजन की सरकार है, शिवराज सिंह चौहान कृषि मंत्री हैं, फिर भी किसानों को मुआवजा नहीं मिल रहा। वही शिवराज जो कांग्रेस सरकार में खेतों में उतर जाते थे, अब खामोश हैं।”
आंदोलन में मौजूद रहे

इस आंदोलन में पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष देवकरण गुर्जर, कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजयलक्ष्मी तंवर, पूर्व विधायक वल्लभ भाई अम्बावतिया, प्रदेश प्रवक्ता गुड्डू लाला, वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह चौहान, पूर्व जिलाध्यक्ष बंशीलाल पाटीदार सहित अनेक नेताओं ने संबोधित किया।
कार्यक्रम का संचालन आशीष त्यागी ने किया और आभार लोकेंद्र सिंह आरोलिया ने माना।
अवसर पर बड़ी संख्या में किसान, पार्षद, पदाधिकारी और महिला कांग्रेस की पदाधिकारी भी मौजूद रहे।
किसानों की असल मांगें

किसानों ने मंच से साफ़ शब्दों में कहा –
- सूखी फसलों का 40,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा
- बिजली के स्मार्ट मीटर की वसूली बंद हो
- उपज का न्यायपूर्ण दाम मिले
खराब फसल और बीमा कंपनियों की मनमानी का दर्द भी जमकर उठाया गया। प्रियव्रत सिंह ने कहा –
“किसान मुआवजे की बात करे तो भाजपा कहती है हिंदू खतरे में हैं। असल खतरे में तो किसान और देश का भविष्य है।”
जयवर्धन सिंह ने विधायक बापू की तारीफ करते हुए कहा –
“बापू मंत्री कद के नेता हैं, मालवा की ताक़त हैं।”
नेताओं का छुपा संदेश

किसानों के मंच से यह भी उजागर हुआ कि कांग्रेस के स्थानीय नेता अब अपनी भीतरूनी राजनीति का रास्ता भी यहीं से बना रहे हैं।
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भेरुसिह परिहार ‘बापू’ का यह कहना कि “मालवा के नेताओं को आगे लाना होगा ताकि 2028 में पार्टी मजबूत रहे” – न केवल किसानों को जोश दिलाने का प्रयास था, बल्कि आलाकमान तक अपनी पहुंच और ताक़त का संदेश भी।
यानी आंदोलन की तस्वीर दोहरी थी –
एक तरफ़ किसानों की पुकार, दूसरी तरफ़ कांग्रेस नेताओं का शक्ति प्रदर्शन।

✍️ सार्थक दृष्टिकोण
सुसनेर की इस धरती पर जब किसान मंच पर अपनी सूखी फसलों और मुआवज़े की माँग लेकर खड़े थे, तब उसी मंच से नेताओं ने दिल्ली तक गूँजने वाले राजनीतिक संदेश लिख दिए। यह दृश्य किसी भी संवेदनशील मन को झकझोर देता है—किसान अपने खेत का दर्द सुनाए और मंच से सत्ता की गणित गाई जाए!
विधायक भेरूसिंह परिहार ‘बापू’ का “प्रियव्रत और जयवर्धन रेस के घोड़े” वाला बयान महज़ प्रशंसा नहीं, बल्कि दिल्ली दरबार को चेतावनी थी—अगर मालवा फतह करना है तो स्थानीय चेहरों को दौड़ाना ही पड़ेगा। पर सवाल यह है कि किसान की सूखी बाली के आँसू इस राजनीतिक शतरंज की गोटी में कहाँ दर्ज होंगे?
राजनीति के इस अखाड़े में किसानों का मंच अब दोहरा हो चुका है—एक ओर पीड़ा, दूसरी ओर प्रदर्शनी। किसानों ने राहत माँगी, मगर नेताओं ने शक्ति दिखलाई। यह विडंबना ही है कि खेतों की मेड़ पर बोई गई आशाओं की फसल मंच से निकलते ही सत्ता की फसल में बदल जाती है।
यही सबसे बड़ा प्रश्न है—क्या यह आंदोलन किसानों के हक़ का समाधान बनेगा या फिर यह भी नेताओं की चुनावी रणनीति की माला में सिर्फ़ एक मोती बनकर रह जाएगा? ✍️- राजेश कुमरावत ‘सार्थक‘
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