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क्या नर्मदा साहित्य मंथन से निकले विचार राष्ट्र की नई राह बनाएंगे?” पढ़ें – वैचारिक मंथन में द्वितीय दिवस पर आयें विचारक, चिंतक और साहित्यकारों के नई क्रांति का सूत्रपात करने वाले उद्बोधन

◾"लिव-इन, सिंगल पैरेंटिंग और डिवोर्स सेलिब्रेशन: आधुनिकता या साजिश?" "भारतीय परिवारों पर मंडरा रहा मार्क्सवाद का खतरा?"
◾"नर्मदा साहित्य मंथन में उठा बड़ा सवाल: संस्कृति बचेगी या बदलेगी?"
◾"फैमिनिज्म और समलैंगिकता के पीछे कोई छिपा हुआ एजेंडा?"

जनमत जागरण न्यूज नेटवर्क इंदौर । विश्व संवाद केंद्र, मालवा प्रांत के प्रतिष्ठित आयोजन नर्मदा साहित्य मंथन ’अहिल्या पर्व’ के दूसरे दिन शनिवार की शुरूआत कबीर के भजनों से हुयी। प्रसिद्ध लोकगायक श्री भेरूसिंह चौहान ने अपने साथियों के साथ सुमधुर कबीर भजनों की प्रस्तुति दी। लोक गायकी ने श्रोताओं का मनमोह लिया। सनातनी धर्म-संस्कृति से ही मार्क्सवादी हमलों से बचाव संभवविश्व संवाद केंद्र, मालवा प्रांत के प्रतिष्ठित आयोजन नर्मदा साहित्य मंथन ’अहिल्या पर्व’ के दूसरे दिन शनिवार को पहले सत्र में विचारक डा. पवन विजय ने ’कल्चरल मार्क्सवाद का परिवारों पर प्रभाव’ विषय पर अपने विचार रखे।

डा. विजय ने कहा, भारतीय समाज की चार प्रमुख इकाईयां है, जिसे हम विचार, धर्म, परिवार और समाज कहते है। इन चारों पर मार्क्सवादी लगातार हमले कर रहे है और इन हमलों का उद्देश्य केवल हमें कमजोर करना है। लैंगिक असमानता, समलैंगिकता और फैमिनिज्म जैसे मुद्दों को समाज में स्थापित करने की कोशिश हो रही है। साहित्य से लेकर फिल्मों को माध्यम बनाया जा रहा है। मार्क्सवादी हमारी संस्कृति के विरोध करने वाले तत्वों को सामाजिक व्यवस्था में एक एजेंडे के साथ स्थापित करने में लगे हुए है। मार्क्सवाद वास्तव में स्थापित व्यवस्था के खिलाफ बात करता है, जिसमें परिवारों को तोड़ना भी शामिल है। मार्क्सवाद वास्तव में एक मजहब है, एक रिलीजन है, जिसकी अपनी विचारधारा है। मार्क्सवाद का ही प्रभाव है कि हर नकारात्मक संस्कृति जैसे सिंगल पैरेंटिग, लिव इन, डिवोस सेलिब्रेशन जैसी संस्कृति को प्रमोट किया जा रहा है। मार्क्सवाद हमलों से हमें केवल हमारा धर्म, संस्कृति, मर्यादा, त्याग, धर्म, परंपरा ही बचा सकती है। परिवारों के मुखिया की भूमिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। संचालन चेतन मीणा ने किया।

भारतीय दर्शन कबीर, तुलसीदास के साथ ही वाल्मीकि का भी :

भारतीय चिति में समावेशिता विषय पर विचार रखते हुए चिंतक डा. गुरूप्रकाश पासवान ने कहा, भारतीय चित्त में समानता लानी होगी, तभी समरसता का भाव स्थापित हो पाएगा। हमें समझना होगा कि क्षेत्र, भाषा, उपासना, पूजा पद्वति, जाति के प्रति हमारी निष्ठा कभी भी राष्ट्र निष्ठा से ज्यादा नहीं हो जाए। हमारा दर्शन तो कबीर, तुलसीदास के साथ ही वाल्मीकि का भी रहा है। 75 सालों में हमने जाति को लेकर भारत में जो समीकरण देखे है, वह तेजी से बदल रहे है। यही कारण है कि आज एक आदिवासी की बेटी देश की राष्ट्रपति है। कई राज्यों में दलित, गरीब और पिछड़ी जाति के लोग बड़े पदों पर बैठे हुए है। यह आज का भारतीय जातीय समीकरण है और यही वास्तव में सनातनी दर्शन भी है । आज का दौर नव सामंतवाद का है, जिसमें वे लोग ताकतवर है जिन्हें कभी स्थान ही नहीं दिया गया। संविधान और बाबा साहेब अम्बेडकर की बात करने वाले लोगों की मानसिकता दोहरी है। बाबा साहब किसी एक दल और परिवार के नहीं बल्कि पूरे देश के है। बाबा साहेब आज भी प्रासंगिक है और यह भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता ही है। आज हमें भारतीय जीवन दर्शन में गांधी, लोहिया, अंबेडकर और दीनदयालजी के विचारों को अपनाकर चलने की आवश्यकता है। संचालन पारस जैन ने किया।

"क्या यह राष्ट्रपुनर्निर्माण की आवश्यकता का संकेत नहीं? – तीसरे सत्र में माधवेंद्र सिंह का उद्बोधन"

राष्ट्रपुनर्निर्माण में युवाओं के कर्तव्य विषय पर तीसरे सत्र में श्री माधवेंद्रसिंह ने अपने विचार रखे। श्री सिंह ने कहा, राष्ट्र निर्माण के मूल में रिश्ते, समभाव और दायित्व का भाव है। राष्ट्रपुनर्निर्माण का मतलब अपनी संस्कृति और परंपराओं को तकनीक और आधुनिक तरीके के साथ देखना है। हमें अपनी परंपराओं और रिश्तो का हनन नहीं होने देना है। हमें पिछड़ेपन के भाव को छोड़कर बाहर आना होगा। हमें अपनी सोच को केंद्रित करना होगा ताकि हमारा लक्ष्य केवल और केवल राष्ट्र हो। इसके लिये हमें आधुनिक संचार माध्यमों का अधिक उपयोग करना होगा लेकिन हमारा विवेक राष्ट्र केंद्रित ही होना चाहिये। मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी के समय में भी भारत के युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। एक बार फिर भारत के युवाओं को राष्ट्रपुनर्निर्माण के लिये आगे आना होगा। इसके लिए लक्ष्य तय करने के साथ ही दृष्टि स्पष्ट करनी होगी। आपने कहा, राष्ट्र एक भौगोलिक इकाई नहीं है बल्कि अपने परंपराओं, सांस्कृतिक और मौलिक विचारों के साथ ही कई तत्वों को मिलकर राष्ट्र का निर्माण होता है। ईटों को जोड़कर भवन बनता है लेकिन रिश्तो को जोड़कर घर बनाया जाता है। वास्तव में राष्ट्र हमारा घर है। हमें पुरानी नींव में नया निर्माण करना है। यही राष्ट्रपुनर्निर्माण है। रामराज्य में कोई गरीबी, अज्ञानता और कष्ट नहीं था। रामराज्य समानता, न्याय और समृद्धि का आदर्श था। यही हमारी सनातनी संस्कृति भी है, जिसे मूल में रखकर ही हमें राष्ट्रपुनर्निर्माण करना है।

"क्या ओटीटी पर बढ़ती गंदगी भारत के सांस्कृतिक अस्तित्व के लिए खतरा नहीं?" - पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहूरकर"

केंद्रीय सूचना आयुक्त रहे वरिष्ट पत्रकार उदय माहूरकर ने कहा, हमने पिछले दस वर्षों में हर क्षेत्र में प्रगति की है और हम विश्व में महासत्ता बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे है। यद्यपि भारत को आज सांस्कृतिक महासत्ता बनने की दिशा में सोचने की जरूरत है। ओटीटी प्लेटफाॅर्म पर आने वाली सामग्री गंदगी से भरी पड़ी है। ओटीटी की सामग्री हमारे परिवारों के रिश्तो को समाप्त कर रही है। ऐसा एक भी रिश्ता नहीं है, जिसके बीच व्यभिचार ओटीटी पर नहीं दिखाया जा रहा है। अश्लील सामग्री ओटीटी पर भरी पड़ी है, जिसे रोकने की जरूरत है। आज हम गाड़ी-बंगले के लिये भाग रहे है, लेकिन हमारा समाज, हमारा परिवार सांस्कृतिक आतंकवाद से जूझ रहा है। भारत हर दिशा में प्रगति कर ले लेकिन यदि हमारी संस्कृति को दूषित करने वाली ओटीटी की सामग्री को समाप्त नहीं किया गया तो हमारी आने वाली पीढ़ी भी सुरक्षित नहीं रहेगी। श्री माहूरकर ने कहा, भारत को विश्वगुरू बनना है इसके लिए हमें भारत को विकृत सामग्री से मुक्त करने का प्रण लेना होगा। वास्तव में ओटीटी की विकृत सामग्री के खिलाफ समाज को आगे आना होगा। ओटीटी के विरुद्ध लड़ाई वास्तव में देश को पवित्र करने की लड़ाई है। विकृत सामग्री प्रसारित करने वालों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। स्वच्छता में लगातार सिरमौर रहने वाले इंदौर से सामाजिक स्वच्छता की मुहिम भी आरंभ होनी चाहिए। संचालन महेंद्र सोनग्रहा ने किया।

"क्या भारतीय संविधान सच में विदेशी प्रभाव से मुक्त है? – लक्ष्मीनारायण भाला का विश्लेषण

श्री लक्ष्मीनारायण भाला ने संविधान की भारतीयता विषय पर अपने विचार रखे। श्री भाला ने कहा, भारत के संविधान में भारतीयता का भाव तत्व स्थापित है। संविधान का हर शब्द अर्थपूर्ण है। हर भारतीय को अपने संविधान के बारे में पता होना चाहिए। संविधान की भाषा कानूनी है, जिसे आम आदमी नहीं समझ सकता है, जिसका सरलीकरण किया जाना चाहिए। संविधान में दिये गए चित्र केवल उसे डेकोरेट करने के लिये नहीं बनाए गए है, उनका भी अपना पूर्ण अर्थ है। भारत का संविधान विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान है।हमारे संविधान में किसी भी विदेशी संविधान से कोई भी अंश नहीं लिया गया है पर हमारे संविधान की तुलना विदेशी संविधानों से की गई है। श्री भाला ने संविधान के निर्माण की यात्रा पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।

नादयोग समूह द्वारा अहिल्या पर्व के द्वितीय दिवस पर सांस्कृतिक प्रस्तुति “रामयुग पुरुष”

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