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माकड़ौन : महापुरुषों की मूर्ति स्थापना के नाम पर खेला जा रहा है घिनौना खेल

माकड़ौन को लगी है किसी की बुरी नजर ! महापुरुषों की आड़ में फैलाई जा रही है द्वेषता !!

जनमत जागरण @ आपके लेख :: उज्जैन जिले का माकडौ़न कस्बा मालवा प्रांत का एक प्रमुख भाग है जिसकी सदियों से सौहार्दता ,सहिष्णुता, भाईचारा और समरसता की सामाजिक और राजनीतिक पहचान रही है। महापुरुषों की मूर्ति स्थापना के नाम पर खेला जा रहा है घिनौना खेल। हाल ही में उत्पन्न मूर्ति स्थापना विवाद से पता चलता है कि इस क्षेत्र का आर्थिक , सामाजिक और शैक्षिक विकास को अवरूद्ध करने के लिए   षड्यंत्र  रचा जा रहा है। पता नहीं कौन लोग हैं जो माकड़ौन की सौहार्दता पूर्ण फिज़ा को दूषित करने में लगे हैं ? 24   जनवरी के दरम्यान जो घटना घटी है। इसका सामाजिक एवं राजनीतिक विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि  इसका  कुचक्र "समाज तोड़ो" , 'द्वेष फैलाव' और "अपना उल्लू सीधा करो"  पोषित विचारधारा के लोगों ने बहुत पहले से रचना शुरू कर दिया था और इसके शिकार हुए नव नियुक्त सीएमओ संजय मालवीय एवं थाना प्रभारी देवड़ा !!     
    प्रशासन  द्वारा ताबड़तोड़ में बिना छानबीन के दो अधिकारियों को निलंबित करने का निर्णय गले नहीं उतरता ? उधेड़बुन में शासन- प्रशासन द्वारा  लिए गये निर्णय से तो ऐसा ही लगता है कि संजय मालवीय और देवड़ा को बलि का बकरा बनाया गया है ?  क्योंकि 10 दिन पहले नगर पंचायत का प्रभार देना और उसके तुरंत बाद यह घटना घटना तथा क्षेत्र के विधायक एवं  सांसद की निष्क्रियता भी  कई तरह के नये नये संदेश देती है और संदेह भी पैदा करती है ?   एक बात समझने की यह है कि जब बस स्टैंड का नाम अंबेडकर बस स्टैंड रखा गया है तो यह स्वाभाविक है कि वहां मूर्ति अंबेडकर की लगना चाहिए। जब बस स्टैंड का नामांकरण हुआ था तब बुद्धिजीवी लोगों ने इसका विरोध क्यों नहीं किया ? जब 10 महीने पहले मूर्ति को लेकर विवाद हुआ था तो जिला प्रशासन और राज्य सरकार ने इसको संज्ञान में क्यों नहीं लिया और इसके  सौहार्द पूर्ण समाधान करने की ओर कदम क्यों नहीं बढ़ाया ? 1 साल से  चल रहे ऊहापोह के वातावरण का  न्याय संगत समाधान नहीं ढूंढने में क्या केवल थानेदार और नगर पंचायत का सीएमओ ही जवाबदारी है ?क्या नगर के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता इसी प्रकार का भाईचारा बिगड़ने इंतजार कर रहे थे? हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में जिला एवं प्रदेश स्तर के राजनीतिक  नेताओं ने दौरा  किया था और वहां के स्थानीय नुमाइंदों ने अपने  दलों के नेताओं के कान पर यह बात नहीं डाली  होगी  !!अशोभनीय बात यह है कि महापुरुषों के नाम पर रोटियां सीखी जा रही है।    
      बात का पतंगढ न बने, इसके पहले  इस पर मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव को तत्काल संज्ञान में लेना चाहिए और  उच्च स्तरीय  समिति गठित कर इसकी जांच  अविलंब करवानी चाहिए। माकड़ौन और आसपास के क्षेत्र की सामाजिक मूल्यों की पहचान को देखते हुएस्थानीय सभी समाज के लोगों को सर्व दलीय बैठक आहूत कर समस्या का जितना जल्दी हो सके समाधान ढूंढना होगा।   
        जिला प्रशासन की ओर से भी  दोनों  अधिकारियों के निलंबन पर कानून सम्मत भेदभाव रहित पूनरविचार करने की आवश्यकता है। वहीं नगर के आसपास के सभी गणमान्य राजनीतिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी अपेक्षा की जाती है कि माकड़ौन और मालवा के शांति , सद्भाव और भाईचारे की परंपरा को जीवित रखने और जन्मदिन प्रगाढ़ करने   की युक्ति पर विचार करना चाहिए।
 - डॉ बालाराम परमार 'हॅंसमुख'
लेखक माकड़ौन क्षेत्र के निवासी  तथा सामाजिक समरसता सद्भाव से सरोकार रखते हैं।

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