कवि/लेखकइंदौरदेशमध्यप्रदेशसम्पादकीय

“नर्मदा साहित्य मंथन : शब्द घोष से संस्कृति का पुनर्जागरण” – साहित्य, संवाद, मंथन की वैचारिक धारा, हर शब्द में गूंजा युगों का जयकारा।

👉 यह स्मृति-काव्य “नर्मदा साहित्य मंथन” के मंथन और संवाद से उपजे विचारों को अभिव्यक्त करता है। जब शब्द संस्कृति को संवारते हैं, तो समाज में चेतना का दीप जलता है। पढ़िए – पूरी रचना

"नर्मदा साहित्य मंथन : शब्द घोष से संस्कृति का पुनर्जागरण" 

मां नर्मदा किनारे युगों से बहा विचारों का संगम,
अहिल्या की धरा पर आकर ज्ञान से किया आलिंगन।।साहित्य, संवाद, मंथन की वैचारिक धारा,
हर शब्द में गूंजा युगों का जयकारा।

कलम कलाधरण की बनी साधना
पत्रकारिता की परिभाषा,
खंडन, मंडन और सनातन ही इसकी भाषा।
इतिहास के आइने के पन्ने नए सिरे से लिखे,
संस्कृति सरीता के दीप फिर से प्रज्वलित किए।

किन्तु , अरे!अंधी दौड़ में बिखर रहा समाज,
संस्कारों की जड़ें हो रही हैं लाचार।
पश्चिमी आंधी में डगमगाते हैं रिश्ते,
परिवारों के दीप मंद पड़ते बदकिस्मत से।

विवाह, मर्यादा, संस्कारों की नींव,
बनती रही जो पीढ़ियों का जीवन संगीत।
आज उन्हीं सुरों में विकृति की छाया,
संस्कृति पर संकट का बादल बन छाया।

लेकिन! यह मंथन एक संकल्प महान,
शब्द घोष से जागेगी पूर्वजों की पहचान।
संवाद से प्रज्वलित होगी नवज्योति फिर से,
सेवा-संस्कार की गूंज गूंजेगी हर घर- हर उर में।

मां नर्मदा की कल-कल छल- छल लहरें साक्षी बनीं ज्ञान की,
संवाद से निकलती राह कल्याण की।
यह पर्व नहीं, यज्ञ में आहुति महान,
साहित्य मंथन से होगा भारत भारतीय का उत्थान।

🖋️ स्मृति काव्य सृजन
- राजेश कुमरावत 'सार्थक'

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