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जानिए: कैसे ‘नानाजी देशमुख’ का शैक्षिक चिंतन बना विद्या भारती की आधारशिला? – बालाराम परमार ‘हंसमुख’ की दृष्टि से

नानाजी देशमुख का शिक्षा दर्शन: विद्या भारती की नींव कैसे बनी? – बालाराम परमार 'हंसमुख' की विशेष रिपोर्ट
"भारत रत्न नाना जी देशमुख का शैक्षिक चिंतन का वटवृक्ष : विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान"डॉ बालाराम परमार 'हॅंसमुख'
सदस्य विद्या भारती मध्य क्षेत्र , भोपाल
भारत रत्न नाना जी देशमुख एक महान शिक्षाविद् और समाज सुधारक एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक थे, जिन्होंने संघ शरणागत रहकर आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली के सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उन्होंने संघ प्रचारक का दायित्व निभाते हुए गोरखपूर की एक धर्मशाला में स्वयं भोजन का प्रबंध करते हुए , तात्कालिन सरसंघसंचालक पूज्य गुरु जी की प्रेरणा से 1952 में शिशु मंदिर प्रारंभ किया था।
इसी शैक्षिक प्रकल्प चिंतन के फलस्वरूप 1977 में विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान की स्थापना दिल्ली में संभव हुई और आज 30 हजार सरस्वती विद्या मंदिर में 158550 आचार्य - दीदी के माध्यम से 34 लाख भैया बहनों को भारतीय संस्कृति के अनुरूप ज्ञानार्जन करवाया जा रहा है।
11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के कडोली गांव में देह धारण और 27 फरवरी 2010 को चित्रकूट में प्रभु मिलन करने वाले भारत रत्न नानाजी देशमुख एक ऐसे भारत मां के लाल हैं , जिन्होंने भारत को विश्व गुरु बनाने के बारे में 75 साल पहले सोच भी लिया था और मन ही मन में योजना भी तैयार कर ली थी।
भारत रत्न नाना जी देशमुख ने अंग्रेजों की मैकाले शिक्षा पद्धति की कमियों और बुराइयों को समझा और शैक्षणिक चिंतन- दर्शन दिया कि आजाद भारत में भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित शिक्षा दी जानी चाहिए। वे मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति को एक आदर्श नागरिक और समाज का एक अच्छा उपयोगी सदस्य बनाना भी है।
इस पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भारतीय आधुनिक शिक्षा प्रणाली तत्वों का समावेश होंने की वकालत की तथा अपने सरस्वती शिशु मंदिर में आरंभ भी की थी।
भारत रत्न नाना जी देशमुख मानते थे कि शिक्षा प्रणाली में भारतीय संस्कृति और मूल्यों का समावेश होना चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उन्होंने व्यावहारिक ज्ञान पर जोर दिया, जिससे विद्यार्थी वास्तविक जीवन में अपने ज्ञान का उपयोग कर सकें।
भारत रत्न नाना जी देशमुख आत्म-निर्भरता पर जोर देते थे। उनका ऐसा विश्वास था कि आत्मनिर्भरता से नागरिकों में 'स्व' की भावना जागृति से राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है । उन्होंने सामाजिक जिम्मेदारी पर जोर दिया, जिससे विद्यार्थी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ सकें।
विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान नाना जी देशमुख के शैक्षिक चिंतन पर आधारित एकमात्र ऐसा शिक्षा संस्थान है जो भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रदान करता है, जिससे विद्यार्थी एक अच्छा नागरिक और समाज का एक उपयोगी सदस्य बन सकें।
विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान भारतीय सनातन संस्कृति और मूल्यों की शिक्षा, उसके शिक्षण एवं प्रसार करने के लिए सरस्वती शिशु मंदिर में प्रातः कालीन प्रार्थना से लेकर अंतिम कालखंड तक मूल्य स्थापना के लिए विधिवत तत्परता से कार्यरत है।विद्या भारती संस्थान व्यक्ति के जीवन में व्यावहारिक ज्ञान की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए भैया- बहनों में अच्छी आदतें, अच्छे विचार, राष्ट्रहित सर्वोपरि जैसे आचरण करने के लिए शिक्षण करता है, जिससे विद्यार्थी वास्तविक जीवन में अपने ज्ञान का सही समय पर सही उपयोग कर सकें।
आत्म निर्भर बनाना शिक्षा के प्रमुख दायित्वों में से एक है। इस बात को समझते हुए भारत रत्न नानाजी देशमुख ने विद्यार्थियों में आत्म-निर्भरता का विकास करने वाली शिक्षण पद्धति पर जोर दिया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं राष्ट्रीय पाठ्यक्रम परिचर्चा 2023 में जिन विषयों का समावेश पांच आधारभूत विषय के रूप में शारीरिक योग, संगीत, संस्कृत, नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा का ही मूलाधार है। बालकों के पंचकोष अर्थात अन्नमय ,प्राणामय , मनोमय विज्ञानमय और आनंदमय के विकास की परिकल्पना राष्ट्र पुरुष भारत रत्न नानाजी देशमुख ने की थी जो अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति के रूप में परिलक्षित हो रही है।
नाना जी देशमुख, ने एक महान शिक्षाविद् और समाजसेवक के रूप में भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत की। उनके शिक्षा दर्शन का मुख्य उद्देश्य भारतीय मूल्यों और संस्कृति के अनुरूप शिक्षा प्रदान करना था।भारत रत्न नाना जी देशमुख के शिक्षा दर्शन में पांच आधारभूत विषय को विद्या मंदिर में शारीरिक योग शिक्षण के माध्यम से शारीरिक स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए योग का अभ्यास प्रतिदिन कराया जाता है। संगीत शिक्षा के अंतर्गत भारतीय वाद्य यंत्रों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। ताकि स्वदेशी वाद्य यंत्र के माध्यम से संस्कृति और कला को निखारा और संवारा जा सके तथा प्रचार प्रसार हो सके। संस्कृत भाषा भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति की अमिट पहचान है। संस्कृत को देव वाणी की मान्यता प्राप्त है। इस संदर्भ में भारत रत्न नानाजी देशमुख ने अपना दर्शन दिया है कि संस्कृत भाषा शिक्षण के माध्यम से विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति बोध और प्राचीन ज्ञान का परिचय आवश्यक है।
अतः संस्कृत शिक्षण का प्रबंध किया जाना राष्ट्रीय हित में है। नाना जी देशमुख की ऐसी इच्छा पूर्ति के संदर्भ में विद्या भारती ने कक्षा एक से आठ तक संस्कृत शिक्षण का प्रबंध किया है।
नैतिक मूल्य सनातन धर्म की अनोखी पहचान है। संसार में व्यक्ति का चरित्र सबसे बड़ा हैं। कहावत है कि धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया, लेकिन यदि चरित्र गया तो सब कुछ गया, क्योंकि चरित्रवान के आगे समस्त संसार नतमस्तक होता हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विद्या भारती द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर एवं विद्या मंदिर में चरित्र निर्माण पर सर्वोच्च बल दिया जाता है।
आजकल, लक्षद्वीप और मिजोरम को छोड़कर पूरे भारत में विद्या भारती की 86 प्रांतीय और क्षेत्रीय समितियां कार्यरत हैं। प्रत्येक प्रांत का संचालन एक संघ प्रचारक के प्रतिनिधि रूप में सहसंगठन मंत्री द्वारा संस्था का सारा कार्य पारदर्शिता के साथ किया जाता है। विद्या भारती शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार, सामाजिक समरसता, स्वदेश प्रेम, और हिंदुत्व विचारधारा की स्थापना और प्रगाढ़ता भाव को लेकर कई अन्य औपचारिक और अनौपचारिक मातृ संस्थाओं का संचालन भी करती है।
इस प्रकार भारत रत्न नाना जी देशमुख का शिक्षा दर्शन एक नए भारत की शैक्षिक यात्रा करने के लिए प्रेरित कर रहा है। उनके विचारों और कार्यों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत की है।
नमन करते हैं......
अखिल जगत को पावन करती
त्रस्त उरों में आशा भरती
भारतीय सभ्यता सिखाती
गंगा की चिर धार बहे।....
जीवन पुष्प चढा चरणों पर
माँगे मातृभूमि से यह वर
तेरा वैभव अमर रहे माँ।

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